भारत के यह है पुराने इतिहास जहां अधिकांश लोगों को नहीं पता

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भारत के यह है पुराने इतिहास जहां अधिकांश लोगों को नहीं पता 

history of India


 गुप्त साम्राज्य ➤ गुप्त साम्राज्य का उदय तीसरी सदी के अंत में प्रयाग के निकट कौशांबी में हुआ। ➤ गुप्त कुषाणों के सामंत थे। ये सम्भवत: वैश्य थे। ➤ गुप्त साम्राज्य उतना विशाल नहीं था जितना मौर्य साम्राज्य, फिर भी इसकी एक विशेषता यह थी कि इसने सारे उत्तर भारत को 335 ई. से 455 ई. तक एक सदी से उपर राजनैतिक एकता के सूत्र में पिरोये रखा। ➤ ऐसा प्रतीत होता है कि गुप्त शासकों के लिए बिहार की अपेक्षा उत्तरप्रदेश अधिक महत्त्व वाला प्रांत था, क्योंकि आरम्भिक गुप्त मुद्राएँ और अभिलेख मुख्यत: इसी राज्य में पाये गये हैं। यहीं से गुप्त शासक कार्य संचालन करते रहे और अनेक दिशाओं में बढ़ते गये। ➤ गुप्त वंश का संस्थापक श्रीगुप्त (240- 280 ई.) था। प्रभावती गुप्त के पूना स्थित ताम्रपत्र अभिलेख में श्रीगुप्त का उल्लेख गुप्त वंश के आदिराज के रूप में किया गया है। ➤ श्रीगुप्त का उत्तराधिकारी घटोत्कच (280-319 ई.) हुआ। प्रभावती गुप्त के पूना एवं ऋद्धपुर ताम्रपत्र अभिलेखों में घटोत्कच को गुप्त वंश का प्रथम राजा बताया गया है। ➤ गुप्त वंश का प्रथम महान सम्राट चन्द्रगुप्त प्रथम (319-334 ई.) था। इसने उस समय के प्रसिद्ध लिच्छवि कुल की कन्या कुमारदेवी जो सम्भवत: नेपाल की थी, से विवाह किया। इस शासक ने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की। ➤ चन्द्रगुप्त प्रथम ने एक संवत्‌ गुप्त संवत्‌ (319-320 ई.) अपने राज्यारोहण के स्मारक के रूप में चलाया। बाद में अनेक अभिलेखों में काल-निर्देशन इस संवत्‌ में मिलता है। ➤ चन्द्रगुप्त प्रथम का उत्तराधिकार समुद्रगुप्त (335-380 ई.) ने गुप्त राज्य का अपार विस्तार किया। वह अशोक की शांति एवं अनाक्रमण की नीति के विपरीत हिंसा एवं आक्रमण में विश्वास करता था। ➤ समुद्रगुप्त ने धरणिबंध (पृथ्वी को बाँधना) अपना वास्तविक लक्ष्य बनाया। उसके द्वारा जीते गये क्षेत्रों को पाँच भागों में बाँटा गया है। समुद्रगुप्त ने आर्यावर्त्त के 9 शासकों और दक्षिणावर्त्त के 12 शासकों को पराजित किया। इन्हीं विजयों के कारण इसे भारत का नेपोलियन कहा जाता है। ➤ प्रयाग प्रशस्ति लेख में समुद्रगुप्त को लोक धाम्रोदेवस्य अर्थात्‌ पृथ्वी पर देवता कहा गया है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि इस युग में भी राजा की उत्पत्ति का दैवी सिद्धान्त लोकप्रिय था। ➤ समुद्रगुप्त के दरबार में प्रसिद्ध कवि हरिषेण रहता था, जिसने इलाहाबाद (प्रयाग) के प्रशस्ति लेख में समुद्रगुप्त के विजय अभियानों का उल्लेख किया है। यह अभिलेख उसी स्तंभ पर खुदा है जिस पर अशोक का स्तंभ लेख है। ➤ समुद्रगुप्त ने अपनी विजयों की उद्‌घोषणा हेतु अश्वमेघ यज्ञ करवाया तथा अश्वमेघकर्त्ता की उपाधि धारण की। ➤ समुद्रगुप्त ने 6 प्रकार की स्वर्ण मुद्राएँ (गरुड़, धनुर्धर, परशु, अश्वमेघ, व्याघ्रहंता एवं वीणासरण) चलवाया, जिनमें गरूड़ मुद्राएँ सर्वाधिक लोकप्रिय थी। ➤ समुद्रगुप्त ने अपने सिक्कों पर अप्रतिरथ, व्याघ्रपराक्रम, पराक्रमांक जैसे विरूद धारण किये। ➤ समुद्रगुप्त संगीत-प्रेमी भी था। ऐसा अनुमान उसके सिक्कों पर उसे वीणा-वादन करते हुए दिखाये जाने से लगाया गया है। ➤ समुद्रगुप्त ने विक्रमांक की उपाधि धारण की। इसे कविराज भी कहा जाता था। ➤ समुद्रगुप्त विष्णु का उपासक था। ➤ एक चीनी स्रोत के अनुसार समुद्रगुप्त के पास श्रीलंका के राजा मेघवर्मन ने गया में एक बौद्ध मंदिर बनवाने की अनुमति प्राप्त करने के लिए अपना एक दूत भेजा था। मंदिर निर्माण की अनुमति समुद्रगुप्त द्वारा दी गयी और यह मंदिर एक विशाल बौद्ध बिहार के रूप में विकसित हो गया। ➤ समस्त गुप्त राजाओं में समुद्रगुप्त का पुत्र चन्द्रगुप्त - II (380-412 ई.) सर्वाधिक शौर्य एवं वीरोचित गुणों से सम्पन्न था। ➤ चन्द्रगुप्त - II ने अपनी पुत्री प्रभावती का विवाह वाकाटक नरेश रूद्रसेन – II से किया, रूद्रसेन – II की मृत्यु के बाद चन्द्रगुप्त ने अप्रत्यक्ष रूप से वाकाटक राज्य को अपने राज्य में मिलाकर उज्जैन को अपनी दूसरी राजधानी बनाया। ➤ चन्द्रगुप्त - II के शासनकाल में चीनी बौद्ध यात्री फाह्यान भारत आया था। ➤ चन्द्रगुप्त - II को देवराज एवं देवगुप्त के नाम से भी जाना जाता था। ➤ चन्द्रगुप्त - II ने शकों को पराजित करने की स्मृति में चाँदी के विशेष सिक्के जारी किये। ➤ चन्द्रगुप्त - II की उज्जैन सभा में रहने वाले नवरत्नों (नौ विद्वानों) में- आर्यभट्‌ट, वाराहमिहिर, धन्वन्तरि, बह्मगुप्त, कालीदास, अमरसिंह, भारवि, विष्णुशर्मा एवं मातृगुप्त आदि का नाम उल्लेखनीय है। ➤ चन्द्रगुप्त - II का उत्तराधिकारी कुमारगुप्त – I या गोविंदगुप्त (415-454 ई.) हुआ। इसे कुमारगुप्त महेंद्रादित्य भी कहा जाता है। ➤ नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना कुमारगुप्त ने की थी। ➤ कुमारगुप्त ने काफी संख्या में मुद्राएँ जारी करवायीं। बयाना-मुद्राभाण्ड से कुमारगुप्त की लगभग 623 मुद्राएँ मिलती हैं। इनमें मयूर शैली की मुद्राएँ विशेष महत्त्वपूर्ण थीं। मयूर शैली में बनी चाँदी की कुछ मुद्राएँ सबसे पहले मध्यप्रदेश में मिलीं। ➤ कुमारगुप्त के सोने के एक सिक्के के अग्रभाग पर अश्व एवं यूप के चित्र हैं तो उसके पृष्ठ भाग पर चर्मधारिणी राजमहषी का चित्र एवं अश्वमेघ महेन्द्र लिखा हुआ है।


➤ चीनी बौद्ध यात्री ह्वेनसांग ने कुमारगुप्त का नाम शक्रादित्य बताया है। ➤ कुमारगुप्त – I का उत्तराधिकारी स्कंदगुप्त (455-467 ई.) हुआ। ➤ स्कंदगुप्त ने गिरिनार पर्वत पर स्थित सुदर्शन झील का पुनरूद्धार करवाया था। इसने पर्णदत्त को सौराष्ट्र का गवर्नर नियुक्त किया। ➤ स्कंदगुप्त की स्वर्णमुद्राओं पर इसकी उपाधि विक्रमादित्य से मिलती है। ➤ स्कंदगुप्त के शासनकाल में ही हूणों का आक्रमण शुरू हो गया। ➤ भानुगुप्त अंतिम गुप्त शासक था। ➤ गुप्त सम्राटों के समय में गणतन्त्रीय राजव्यवस्था का ह्रास हुआ। गुप्त प्रशासन राजतन्त्रात्मक व्यवस्था पर आधारित था। देवत्व का सिद्धान्त गुप्तकालीन शासकों में प्रचलित था। राजपद वंशानुगत सिद्धान्त पर आधारित था। राजा अपने बड़े पुत्र को युवराज घोषित करता था। ➤ गुप्त सम्राट न्याय, सेना एवं दीवानी विभाग का प्रधान होता था। प्रजा अपने राजा को पृथ्वी पर ईश्वर के प्रतिनिधि के रूप में स्वीकार करती थी। ➤ गुप्त सम्राट परमदेवता, परमभट्‌टारक, महाराजाधिराज, पृथ्वीपाल, परमेश्वर, सम्राट, एकाधिकार एवं चक्रवर्तिन जैसी उपाधियाँ धारण करता था। ➤ गुप्तकालीन रानियों को परमभट्‌टारिका, परमभट्‌टारिकाराज्ञी एवं महादेवी जैसी उपाधियाँ दी गयीं। गुप्तकालीन अभिलेखों में वर्णित अधिकारी 1 सर्वाध्यक्ष राज्य के सभी केन्द्रीय विभागों के प्रमुख अधिकारी 2 प्रतिहार एवं महाप्रतिहार सम्राट से मिलने की इच्छा रखने वालों को आज्ञापत्र देना इनका मुख्य कार्य था। प्रतिहार अंत:पुर का रक्षक एवं महाप्रतिहार राजमहल के रक्षकों का मुखिया होता था। 3 कुमारामात्य पदाधिकारियों का सर्वश्रेष्ठ वर्ग, इन्हें उच्च से उच्च पद पर नियुक्त किया जाता था। 4 महासेनापति सेना का सर्वोच्च अधिकारी 5 रणभांडागारिक सैन्य आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाला अधिकारी 6 महाबलाधिकृत सैनिक अधिकारी 7 दण्डपाशिक पुलिस-विभाग का प्रधान। इस विभाग के साधारण कर्मचारी चाट-भाट कहलाते थे। 8 महादण्डनायक युद्ध एवं न्याय-विभाग का कार्य देखने वाला। 9 महसंधिविग्रहिक युद्ध-शान्ति या वैदेशिक नीति का प्रधान 10 विनयस्थिति स्थापक शान्ति-व्यवस्था का प्रधान 11 महाभंडाराधिकृत राजकीय कोष का प्रधान ‌‌ 12 महाअक्षपटलिक अभिलेख-विभाग का प्रधान 13 सर्वाध्यक्ष केन्द्रीय सचिवालय का प्रधान 14 ध्रुवाधिकरण कर वसूलने वाले विभाग का प्रधान 15 अग्रहारिक दान-विभाग का प्रधान 16 महापीलुपति गजसेना का अध्यक्ष कुशल प्रशासन के लिए गुप्त साम्राज्य कई प्रांतों में बँटा था। प्रांतों को देश, भुक्ति अथवा अवनी कहा जाता था। ➤ प्रशासन की सबसे बड़ी प्रादेशिक इकाई देश थी, इसके प्रमुख को गोप्ना/गोप्ता कहा जाता था। ➤ दूसरी प्रादेशिक इकाई भुक्ति थी, इसके प्रमुख को उपरिक कहा जाता था। ➤ भुक्ति के नीचे विषय नामक प्रशासनिक इकाई होती थी, जिसके प्रमुख विषयपति कहलाते थे। ➤ प्रशासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम थी। ग्राम का प्रशासन ग्राम-सभा द्वारा संचालित ‌‌‌‌होता था। ग्राम-सभा का मुखिया ग्रामीक कहलाता था एवं अन्य सदस्य महत्तर कहलाते थे। ➤ ग्राम समूहों की छोटी इकाई पेठ कहलाती थी। ➤ अमरसिंह ने अमरकोष में 12 प्रकार की भूमि का उल्लेख किया है। ➤ गुप्तकाल में आर्थिक उपयोगिता के आधार पर निम्न प्रकार की भूमि थी- 1. वास्तु- वास करने योग्य भूमि 2. क्षेत्र- कृषि करने योग्य भूमि 3. चारागाह भूमि- पशुओं के चारा योग्य भूमि 4. खिल्य- ऐसी भूमि जो जोतने योग्य नहीं होती थी 5. अप्रहत- ऐसी भूमि जो जंगली होती थी सम्भवत: गुप्तकाल में भूराजस्व कुल उत्पादन का 1/4 से 1/6 भाग तक होता था। ➤ गुप्तकाल में सिंचाई के लिए रहट या घंटी यन्त्र का प्रयोग होता था। ➤ श्रेणी के प्रधान को ज्येष्ठक कहा जाता था।  


➤ गुप्तकाल में उज्जैन सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण व्यापारिक केन्द्र था। ➤ गुप्तशासकों ने सर्वाधिक स्वर्ण मुद्राएँ जारी की। इनकी स्वर्ण मुद्राओं को अभिलेखों में दीनार कहा गया है। ➤ कायस्थों का सर्वप्रथम वर्णन इस काल के याज्ञवल्क्य स्मृति में मिलता है। पृथक्‌ जाति के रूप में कायस्थों का सर्वप्रथम वर्णन ओशनम्‌ स्मृति में मिलता है। ➤ विंध्य के जंगलों में इस काल में निवास करने वाले शबर जाति के लोग अपने देवताओं को मनुष्य का मांस चढ़ाते थे। ➤ सर्वप्रथम किसी के सती होने का प्रमाण 510 ई. के भानुगुप्त के एरण अभिलेख से मिलता है, जिसमें किसी भोजराज गोपराज (सेनापति) की मृत्यु पद उसकी पत्नी के सती होने का उल्लेख है। ➤ गुप्तकाल में वेश्यावृति करने वाली महिलाओं को गणिका कहा जाता था। वृ वेश्याओं को कुट्‌टनी कहा जाता था। ➤ गुप्त सम्राट वैष्णव धर्म के अनुयायी थे,लेकिन उन्होंने अन्य धर्मों के प्रति भी सहिष्णुता की नीति अपनाई। ➤ गुप्तकाल में वैष्णव धर्म का सबसे महत्त्वपूर्ण अवशेष देवगढ़ (झांसी-उत्तरप्रदेश) का दशावतार मंदिर है। गुप्तकालीन में निर्मित प्रसिद्ध मंदिर मंदिर स्थान विष्णु मंदिर तिगवा (जबलपुर-मध्यप्रदेश शिव मंदिर भूमरा (नागौद-मध्यप्रदेश) पार्वती मंदिर नचना कुठार (मध्यप्रदेश) दशावतार मंदिर (ईट से निर्मित) देवगढ़ (झांसी-उत्तरप्रदेश) शिव मंदिर खोह (नागौद-मध्यप्रदेश) भीतर गाँव का लक्ष्मण मंदिर (र्इंट से निर्मित) भीतर गाँव (कानपुर-उत्तरप्रदेश) अजंता में निर्मित कुल 29 गुफाओं में वर्तमान में केवल 6 ही शेष हैं, जिनमें गुफ संख्या 16 एवं 17 ही गुप्तकालीन हैं । इसमें गुफा संख्या 16 में उत्कीर मरणासन्न राजकुमारी का चित्र प्रशंसनीय है। ➤ गुफा संख्या 17 के चित्र को चित्रशाला कहा गया है। इस चित्रशाला में बुद्ध के जन्म, जीवन, महाभिनिष्क्रमण एवं महापरिनिर्वाण की घटनाओं से सम्बन्धित चित्र उकेरे गये हैं। ➤ अजंता की गुफाएँ बौद्ध धर्म की महायान शाखा से सं है। ➤ गुप्तकाल में निर्मित अन्य गुफा बाघ की गुफा है, जो ग्वालियर के समीप बाघ नामक स्थान पर विंध्य पर्वत को काटकर बनायी गयी थी। ➤ चन्द्रगुप्त - II के काल में कालिदास संस्कृत भाषा के सबसे प्रसिद्ध कवि थे। ➤ प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य धन्वंतरि चन्द्रगुप्त - II के दरबारी थे।


 ➤ गुप्तकाल में विष्णु शर्मा द्वारा संस्कृत में रचित पंचतन्त्र को संसार का सर्वाधिक प्रचलित ग्रन्थ माना जाता है। बाइबिल के बाद इसका स्थान दूसरा है। इसे पाँच भागों में बाँटा गया है- 1. मित्रभेद, 2. मित्रलाभ, 3.संधि-विग्रह, 4. लब्ध-प्रणाश, 5 अपरीक्षाकारित्व। ➤ आर्यभट्‌ट ने आर्यभट्‌टीयम एवं सूर्यसिद्धान्त नामक ग्रन्थ लिखे। इसी ने सर्वप्रथम बताया कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है। ➤ पुराणों की वर्तमान रूप में रचना गुप्तकाल में हुई। पुराणों में ऐतिहासिक परम्पराओं का उल्लेख है। ➤ गुप्तकाल में चाँदी के सिक्कों को रूप्यका कहा जाता था। ➤ याज्ञवल्क्य, नारद, कात्यायन एवं बृहस्पति स्मृतियों की रचना गुप्तकाल में ही हुई। ➤ मंदिर बनाने की कला का जन्म गुप्तकाल में ही हुआ। ➤ सांस्कृतिक उपलब्धियों के कारण गुप्तकाल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग (Golden Age) , क्लासिकल युग ( Classical Age) एवं पैरीक्लीन युग (Periclean Age) कहा जाता है। गुप्तकालीन नाटक एवं नाटककार नाटक का नाम नाटककार नाटक का विषय मालविकाग्निमित्रम्‌ कालिदास अग्निमित्र एवं मालविका की प्रणय-कथा पर आधारित विक्रमोर्वशीयम्‌ कालिदास सम्राट पुरूरवा एवं उर्वशी अप्सरा की प्रणय-कथा पर आधारित अभिज्ञानशाकुंतलम्‌ कालिदास दुष्यन्त तथा शकुंतला की प्रणय-कथा पर आधारित मुद्राराक्षस विशाखदत्त इस ऐतिहासिक नाटक में चन्द्रगुप्त मौर्य के मगध के सिंहासन पर बैठने की कथा का वर्णन है। मृच्छकटिकम्‌ शूद्रक इस नाटक में नायक चारूदत्त, नायिका वसंतसेना के अतिरिक्त राजा, ब्राह्मण, जुआरी, व्यापारी, वेश्या, चोर, धूर्त, दास आदि का वर्णन है। स्वप्नवासवदत्तम्‌ भास इसमें महाराज उदयन एवं वासवदता की प्रेमकथा का वर्णन है। प्रतिायौगंधरायणम्‌ भास इसमें महाराज उदयन किस तरह यौगंधरायण की सहायता से वासवदत्ता को उज्जैयिनी से लेकर भागता है, का वर्णन है। चारूदत्तम्‌ भास इस नाटक का नायक चारूदत्त मूलत: भास की कल्पना है। गुप्तकालीन तकनीकी ग्रन्थ रचनाकार रचना का नाम चन्द्रगोभिन चन्द्र व्याकरण अमरसिंह अमरकोष (संस्कृत का प्रामाणिक कोश) कामन्दक नीतिसार (कौटिल्य के अर्थशास्त्र से प्रभावित) वात्स्यायन कामसूत ।

भारत स्वतंत्र दिवस ।। 


15 अगस्त 1947 का यह है सच्चा इतिहास जानें ।।


नेहरू परिवार का यह है काला सच जानने के बाद आप भी चौंक जाएंगे

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