संतोषी माता की आरती लिखी हुई : संतोषी माता की चालीसा

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संतोषी माता के चमत्कार जानेंगे तो आप खुश हो जाएंगे ।

संतोषी माता



संतोषी माता की चालीसा 


हिंदू धर्म में बहुत से देवी देवता है परंतु संतोषी माता की महिमा और उनकी कृपा बहुत कम लोग जानते हैं 👉कैसे करते हैं भक्तों को कृपा? आइए जानते हैं और उन को खुश करके कृपया प्राप्त कर लेते हैं !


 यह बहुत माना जाता है की लगातार 16 शुक्रवार को व्रत और प्रार्थना करने से भक्तों के जीवन में शांति और समृद्धि व्याप्त हो जाती है। मां संतोषी व्यक्ति को पारिवारिक मूल्यों का और दृढ़ संकल्प के साथ संकट से बाहर आने के लिए प्रेरित करती हैं। संतोषी मां भी मां दुर्गा का ही अवतार मानी जाती हैं और व्यापक रूप से पुरे भारत में और भारत के बाहर भी पूजी जाती हैं। 


संतोषी माता की परिवार में 

कौन-कौन रहते हैं?


दादाजी- भगवान शिव

दादीजी- देवी पार्वती

पिता- भगवान गणेश

मां- या तो रिद्धी या सिद्धी

भाई- शुभ और लाभ


आपको बता दें दिल्ली में हरि नगर बस डिपो के पास स्थित संतोषी माता का मंदिर सबसे प्रसिद माता मंदिरों में से एक है। मंदिर में दिल्ली एनसीआर से बड़ी संख्या में लोग नवरात्र के दौरान आते हैं और मां से आशीष लेते हैं। मंदिर में इस बार 91वें नवरात्र मेले की आयोजन किया जाता है। खराब मौसम के बावजूद यहां न तो भक्तों के उत्साह में कोई कमी आती है और न ही उनकी संख्या में। मंदिर लगभग 100 साल पुराना है। जैसे-जैसे भक्तों के बीच इसकी मान्यता बढ़ती गई, मंदिर का स्वरूप भी बदलता गया।


यहां नवरात्र के समय भक्तों की भीड़ चरम पर होती है। मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां कोई पुजारी नहीं है। हर मंगलवार को मां वैष्णो देवी और हर रविवार को संतोषी माता की यहां चौकी होती है। नवरात्र के दौरान रात 2 बजे तक दुर्गा सप्तसती का पाठ होता है। श्रद्धालुओं की मदद के लिए यहां 900 सेवादार हैं। दोपहर 3 बजे से रात 10 बजे तक भंडारा होता है। यहां एक पीपल का पेड़ है, इस पीपल के पेड़ पर चुनारी बांधने से हर मुरादें पूरी होती हैं।


संतोषी माता को प्रसन्न करने का महामंत्र ।


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सुखदाता भाग्य विधाता जय करना संतोषी मां।

गए ग्नता गन बुध गता ऋद्धि सिद्धि दाता॥

शुभ होव तुज नाम ही लेते, सहाय को मां प्रेम से आये।

संतोषी मां मंगल करना, तुज व्रत करके सब हरखाये॥


संतोषी माता की चालीसा ।


॥ दोहा ॥

बन्दौं सन्तोषी चरण रिद्धि-सिद्धि दातार।

ध्यान धरत ही होत नर दुःख सागर से पार॥

भक्तन को सन्तोष दे सन्तोषी तव नाम।

कृपा करहु जगदम्ब अब आया तेरे धाम॥


॥ चौपाई ॥

जय सन्तोषी मात अनूपम ।

शान्ति दायिनी रूप मनोरम ॥


सुन्दर वरण चतुर्भुज रूपा ।

वेश मनोहर ललित अनुपा ॥


श्‍वेताम्बर रूप मनहारी ।

माँ तुम्हारी छवि जग से न्यारी ॥


दिव्य स्वरूपा आयत लोचन ।

दर्शन से हो संकट मोचन ॥ 4 ॥


जय गणेश की सुता भवानी ।

रिद्धि- सिद्धि की पुत्री ज्ञानी ॥


अगम अगोचर तुम्हरी माया ।

सब पर करो कृपा की छाया ॥


नाम अनेक तुम्हारे माता ।

अखिल विश्‍व है तुमको ध्याता ॥


तुमने रूप अनेकों धारे ।

को कहि सके चरित्र तुम्हारे ॥ 8 ॥


धाम अनेक कहाँ तक कहिये ।

सुमिरन तब करके सुख लहिये ॥


विन्ध्याचल में विन्ध्यवासिनी ।

कोटेश्वर सरस्वती सुहासिनी ॥


कलकत्ते में तू ही काली ।

दुष्ट नाशिनी महाकराली ॥


सम्बल पुर बहुचरा कहाती ।

भक्तजनों का दुःख मिटाती ॥ 12 ॥


ज्वाला जी में ज्वाला देवी ।

पूजत नित्य भक्त जन सेवी ॥


नगर बम्बई की महारानी ।

महा लक्ष्मी तुम कल्याणी ॥


मदुरा में मीनाक्षी तुम हो ।

सुख दुख सबकी साक्षी तुम हो ॥


राजनगर में तुम जगदम्बे ।

बनी भद्रकाली तुम अम्बे ॥ 16 ॥


पावागढ़ में दुर्गा माता ।

अखिल विश्‍व तेरा यश गाता ॥


काशी पुराधीश्‍वरी माता ।

अन्नपूर्णा नाम सुहाता ॥


सर्वानन्द करो कल्याणी ।

तुम्हीं शारदा अमृत वाणी ॥


तुम्हरी महिमा जल में थल में ।

दुःख दारिद्र सब मेटो पल में ॥ 20 ॥


जेते ऋषि और मुनीशा ।

नारद देव और देवेशा ।


इस जगती के नर और नारी ।

ध्यान धरत हैं मात तुम्हारी ॥


जापर कृपा तुम्हारी होती ।

वह पाता भक्ति का मोती ॥


दुःख दारिद्र संकट मिट जाता ।

ध्यान तुम्हारा जो जन ध्याता ॥ 24 ॥


जो जन तुम्हरी महिमा गावै ।

ध्यान तुम्हारा कर सुख पावै ॥


जो मन राखे शुद्ध भावना ।

ताकी पूरण करो कामना ॥


कुमति निवारि सुमति की दात्री ।

जयति जयति माता जगधात्री ॥


शुक्रवार का दिवस सुहावन ।

जो व्रत करे तुम्हारा पावन ॥ 28 ॥


गुड़ छोले का भोग लगावै ।

कथा तुम्हारी सुने सुनावै ॥


विधिवत पूजा करे तुम्हारी ।

फिर प्रसाद पावे शुभकारी ॥


शक्ति- सामरथ हो जो धनको ।

दान- दक्षिणा दे विप्रन को ॥


वे जगती के नर औ नारी ।

मनवांछित फल पावें भारी ॥ 32 ॥


जो जन शरण तुम्हारी जावे ।

सो निश्‍चय भव से तर जावे ॥


तुम्हरो ध्यान कुमारी ध्यावे ।

निश्चय मनवांछित वर पावै ॥


सधवा पूजा करे तुम्हारी ।

अमर सुहागिन हो वह नारी ॥


विधवा धर के ध्यान तुम्हारा ।

भवसागर से उतरे पारा ॥ 36 ॥


जयति जयति जय संकट हरणी ।

विघ्न विनाशन मंगल करनी ॥


हम पर संकट है अति भारी ।

वेगि खबर लो मात हमारी ॥


निशिदिन ध्यान तुम्हारो ध्याता ।

देह भक्ति वर हम को माता ॥


यह चालीसा जो नित गावे ।

सो भवसागर से तर जावे ॥ 

इसे आप लगातार शुक्रवार के दिन संतोषी माता का सम्मुख चालीसा पढ़े माता कृपा करेंगे आपके संसार में सुख शांति की वृद्धि होगी और आर्थिक व्यवस्था का भी बहुत ही उन्नति होने वाले हैं ।

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