भगवान सत्यनारायण की कथा कब करने से अधिक लाभ मिलेगा जानिए हमारे साथ नमस्कार दोस्तों हमारे वेबसाइट में आपका स्वागत है ।भगवान नारायण ही सत्य है जिसे विष्णु के रूप में पूज किया जाता है। इसका दूसरा अर्थ यह है कि संसार में एकमात्र नारायण ही सत्य हैं, बाकी सब माया है ।
विष्णु भगवान की पूजा कई रूपों में की जाती है, उनमें से उनका सत्यनारायण स्वरूप इस कथा में बताया गया है। इसके मूल पाठ में पाठांतर से लगभग 170 श्लोक संस्कृत भाषा में उपलब्ध है जो पांच अध्यायों में बंटे हुए हैं। इस कथा के दो प्रमुख विषय हैं- जिनमें एक है संकल्प को भूलना और दूसरा है प्रसाद का अपमान।
व्रत कथा के अलग-अलग अध्यायों में छोटी कहानियों के माध्यम से बताया गया है कि सत्य का पालन न करने पर किस तरह की परेशानियां आती है हर इंसान को पता नहीं होता। इसलिए जीवन में सत्य व्रत का पालन पूरी निष्ठा और सुदृढ़ता के साथ करना चाहिए। ऐसा न करने पर भगवान न केवल नाराज होते हैं अपितु दंड स्वरूप संपति और बंधु बांधवों परिजनों सुख से वंचित भी कर देते हैं। इस अर्थ में यह कथा लोक में सच्चाई की प्रतिष्ठा का लोकप्रिय और सर्वमान्य धार्मिक साहित्य हैं। प्रायः पूर्णमासी को इस कथा का परिवार में वाचन किया जाता है।
जिस व्यक्ति श्रद्धा और भक्ति से सत्यनारायण की पूजा देते हैं उनकी मनोकामना पूरी होती है और कोई भी संकट से मुक्त रहते हैं । जो व्यक्ति ईश्वर प्रति विश्वास रखते हैं वैसे भक्तों को भगवान विष्णु कभी निराश नहीं करते हैं उनकी झोली हमेशा हरा भरा रखते हैं ।
सत्यनारायण कथा हिंदू धर्म में एक प्रसिद्ध पूजा है जो विशेष रूप से पूर्णिमा तिथि को की जाती है। इस पूजा के दौरान श्रद्धालु सत्यनारायण कथा का पाठ करते हैं जो एक महत्वपूर्ण धार्मिक कथा है।
सत्यनारायण कथा के अनुसार, एक बार एक व्यापारी ने अपने धन को किसी व्यापार में लगाने के लिए दो ब्राह्मणों को निमंत्रण दिया। इस व्यापार में उन्होंने लोगों से अधिक धन लिया था, लेकिन व्यापार असफल हो गया था और वह अधिक धन वापस नहीं कर सकता था। इससे उसकी चिंता बढ़ गई थी।
उस व्यापारी के मित्र ने उसे सत्यनारायण कथा के बारे में बताया और उसे यह सलाह दी कि उसे सत्यनारायण कथा का पाठ करना चाहिए। वह उस दिन से ही हर पूर्णिमा को सत्यनारायण कथा का पाठ करने लगा और उसे सफलता मिलने लगी।
सत्यनारायण कथा में सत्यनारायण भगवान की महिमा और उनके शक्तियों का वर्णन किया गया है। इस कथा में उनके भक्तों के प्रति भगवान विष्णु की कृपा हमेशा बनी रहे ।
दोस्तों शास्त्र के अनुसार यदि आपके मन में सत्यनारायण पूजा करने की इच्छा है तो हार गुरुवार को शाम के समय सत्यनारायण की कथा कर सकते हैं । और वैसे भी सत्यनारायण की पूजा सबसे महत्वपूर्ण तब किया जाता है जब कोई व्यक्ति नया निवास निर्माण करता है । अपने नया निवास में प्रवेश करने से पहले भगवान सत्यनारायण की पूजा अवश्य देना चाहिए । इससे घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव नहीं पड़ता है जिसके कारण घर में हमेशा सुख शांति बनाए रहते हैं ।
इनकी पूजा में केले के पत्ते व फल के अलावा पंचामृत, पंचगव्य, सुपारी, पान, तिल, मोली, रोली, कुमकुम, दूर्वा की आवश्यकता होती जिनसे भगवान की पूजा होती है। सत्यनारायण की पूजा के लिए दूध, मधु, केला, गंगाजल, तुलसी पत्ता, मेवा मिलाकर पंचामृत तैयार किया जाता है जो भगवान को काफी पसंद है। इन्हें प्रसाद के तौर पर फल, मिष्टान्न के अलावा आटे को भून कर उसमें चीनी मिलाकर एक प्रसाद बनता है जिसे सत्तू ( पंजिरी ) कहा जाता है, उसका भी भोग लगता है।
यदि आप सत्यनारायण पूजा करने की इच्छुक हैं तो आप इस विधि नियम अनुसार पूजा कर सकते हैं इसे संक्षिप्त में दिया गया है ।
जो व्यक्ति सत्यनारायण की पूजा का संकल्प लेते हैं उन्हें दिन भर व्रत रखना चाहिए। पूजन स्थल को गाय के गोबर से पवित्र करके वहां एक अल्पना बनाएं और उस पर पूजा की चौकी रखें। इस चौकी के चारों पाये के पास केले का वृक्ष लगाएं। इस चौकी पर शालिग्राम या ठाकुर जी या श्री सत्यनारायण की प्रतिमा स्थापित करें। पूजा करते समय सबसे पहले गणपति की पूजा करें फिर इन्द्रादि दशदिक्पाल की और क्रमश: पंच लोकपाल, सीता सहित राम, लक्ष्मण की, राधा कृष्ण की। इनकी पूजा के पश्चात ठाकुर जी व सत्यनारायण की पूजा करें। इसके बाद लक्ष्मी माता की और अंत में महादेव और ब्रह्मा जी की पूजा करें।
पूजा के बाद सभी देवों की आरती करें और चरणामृत लेकर प्रसाद वितरण करें। पुरोहित जी को दक्षिणा एवं वस्त्र दे व भोजन कराएं। पुराहित जी के भोजन के पश्चात उनसे आशीर्वाद लेकर आप स्वयं भोजन करें।
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