lord shiva history ।। भगवान शिव का इतिहास ।।
lord shiva history भगवान शिव का इतिहास क्या है? भगवान शिव का कैसे जन्म हुआ है? कौन है भगवान शिव? विस्तार से जानने के लिए हमारे साथ बने रहें दोस्तों हमारे वेबसाइट में आपका स्वागत है । देवों के देव महादेव के विषय में जानकारी प्राप्त करना इतना सरल नहीं है ।जो व्यक्ति भगवान शिव के प्रति आस्था रखते हैं एवं भक्ति श्रद्धा विश्वास करते हैं उन्हीं भक्तों को मिलते हैं भगवान शिव के विषय में जानकारी ।लेकिन आज जो हम आपको भगवान शिव के इतिहास बताने जा रहे हैं यह सभी धर्म ग्रंथ के अनुसार । दोस्तों भगवान शिव का नाम से सब कुछ प्राप्त होता है । भगवान शिव का नाम इसलिए पड़ा है वह तो सर्वोच्च में है वही शिव है जिनका ना कोई आदि है ना अनादि है । जिनका रूप देखकर तीनो लोग महित हो जाते हैं उसी का नाम है त्रिनाथ । ग्रंथ के अनुसार भगवान शिव जगत के पिता है यह तीनों लोकों का स्वामी है स्वर्ग, पताल और धरती भगवान शिव के अंदर में ही समाहित हैं ।
धर्म ग्रंथ के अनुसार: भगवान शिव सर्वप्रथम सती माता से विवाह किया था । सती माता का पिता राजा दक्ष थे और राजा दक्ष के पिता ब्रह्मा देव हैं । ब्रह्मा देव के वरदान के कारण राजा दक्ष के 7 पुत्र थी । सात पुत्री में से सती माता सबसे बड़े थे । सती माता कोई और नहीं जगत के माता जिन्हें आप दुर्गा माता का नाम से जानते हैं । सती माता ने कई वर्षों तक भगवान शिव से विवाह करने के लिए तपस्या किया था लेकिन सती माता के इस निर्णय ने राजा दक्ष के मन क्रोधित हुआ क्योंकि सती माता का विवाह किसी और सुंदर राजपूत्र के साथ करने की इच्छा था । मगर सती माता ने निर्णय ले लिया कि जब तक उन्हें भगवान शिव से विवाह नहीं हो जाता है तब तक जाल तक ग्रहण नहीं करेंगे । सती माता और शिव के विवाह से नाराज थे राजा दक्ष । राजा दक्ष भगवान शिव को कभी पसंद नहीं करते थे और ना ही उन्हें देवता के स्थान पर पूजा पाठ करते थे । राजा दक्ष सदैव भगवान विष्णु और ब्रह्मा देव को पूजा किया करते थे । जब महादेव और सती के साथ विवाह हुआ तो राजा दक्ष ने कन्यादान सही मन से नहीं किया उन्हें भगवान शिव को बिल्कुल पसंद नहीं था जिसके कारण किसी भी योग समारोह में सती माता को आमंत्रण भी नहीं किया । जगत माता सती माता ने कठोर तपस्या करने के बाद भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त की है मगर एक दिन राजा दक्ष ने योग समारोह आयोजन किया सभी देवताओं को आमंत्रित किया था मगर राजा दक्ष ने अपनी पुत्री सती माता को निमंत्रण नहीं किया जिसके कारण सती माता ने बहुत दुख किया लेकिन इतने बड़े योग समारोह में शामिल कैसे नहीं होते सती माता के मन स्थिर नहीं रहा और फिर महादेव से अनुमति लेकर पिता दक्ष के योग समारोह में शामिल हुआ । सती माता को राजा दक्ष ने देखते ही अपमानित करने लगा। सती माता को ऐसे अपमानित किया जोकि किसी स्त्री के सुनना संभव नहीं था । राजा दक्ष के योग समारोह में शामिल होने के कुछ देर के बाद पिता दक्ष ने सती माता को भगवान शिव के विषय में कुछ उल्टा सीधा बाते बोल कर अपमानित किया जांहा सती माता ने यह अपमानित कभी बर्दाश्त नहीं किए। सती माता ने उसी समय रोते-रोते अग्नि में प्रवेश हो गए थे । सती माता ने अग्नि में प्रवेश करने से पहले कहा कि किसी भी स्त्री को अपने पति का निंदा सुनना नहीं चाहिए पति का निंदा सुनना पत्नी को बहुत ही बड़ा पाप लगता है । सती माता के साथ नंदी जी आए थे लेकिन ऐसे दुर्घटना देखने के बाद भगवान शिव के वाहन नंदी जी और रहने पाए सीधे भगवान शिव के पास आकर सारी बात बताई । तब भगवान शिव ने इतना क्रोधित हुए जहां राजा दक्ष से लेकर योग समारोह में उपस्थित सभी देवता देवी देवताओं को दंड देने लगे । भगवान शिव सती माता की ऐसी दृश्य देखकर राजा दक्ष की शरीर से सिर कर दिया अलग ।और फिर तब तक भगवान शिव शांत नहीं हुआ जब तक सती माता के शरीर भगवान शिव के कंधों पर थे। भगवान शिव सती माता के शरीर अपने कंधों पर लेकर पूरे ब्रह्मांड में तांडव मच ने लगे । पुरी सृष्टि का ही सर्वनाश होने वाला था लेकिन भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती माता के पार्थिव शरीर को 51टुकड़ों में बांट दिया । जहां धरती माता के गर्व में आकर गिरा और आज वही स्थान एक तीर्थ स्थान में बदल गया । कहा जाता है माता का 51पीठ स्थान पर जो भी भक्त जाते हैं अपनी मनोकामना पूरी हो जाते हैं ।
सती माता के जाने के बाद: भगवान शिव कई हजारों वर्ष तक अपने ध्यान में लीन थे ,उन्हें जागृत करने के लिए फिर सती माता ने जन्म लिया पार्वती के रूप से । पार्वती, उमा या गौरी मातृत्व, शक्ति, प्रेम, सौंदर्य, सद्भाव, विवाह, संतान की देवी हैं। देवी पार्वती कई अन्य नामों से जानी जाती है, वह सर्वोच्च हिंदू देवी परमेश्वरी आदि पराशक्ति (शिवशक्ति) की साकार रूप है और शाक्त सम्प्रदाय या हिन्दू धर्म मे एक उच्चकोटि या प्रमुख देवी है और उनके कई गुण,रूप और पहलू हैं। उनके प्रत्येक पहलुओं को एक अलग नाम के साथ व्यक्त किया जाता है, जिससे उनके भारत की क्षेत्रीय हिंदू कहानियों में 10000 से अधिक नाम मिलते हैं। लक्ष्मी और सरस्वती के साथ, वह हिंदू देवी-देवताओं (त्रिदेवी) की त्रिमूर्ति का निर्माण करती हैं। माता पार्वती हिंदू भगवान शिव की पत्नी हैं । वह पर्वत राजा हिमांचल और रानी मैना की बेटी हैं। मां पार्वती देवी के संतान गणेश, कार्तिकेय, अशोकसुंदरी, ज्योति और मनसा देवी अय्यप्पा की सौतेली माता हैं। पुराणों में उन्हें श्री विष्णु की बहन कहाँ गया है। वे ही मूल प्रकृति और कारणरूपा है। शिव विश्व के चेतना है तो पार्वती विश्व की ऊर्जा हैं। पार्वती माता जगतजननी अथवा परब्रह्मस्वरूपिणी है।भगवान शिव से विवाह करने के लिए कई हजारों वर्षों तक तपस्या किए थे तभी जाकर भगवान शिव को अपने पति रूप में प्राप्त किए हैं । भगवान शिव को देवों के देव महादेव भी कहा जाता है क्योंकि महादेव सभी के भीतर समाहित हैं जहां भी देखोगे वही भगवान शिव को प्राप्त कर सकते हैं । भगवान शिव को प्राप्त करना इतना सरल नहीं लेकिन भक्ति अगर किसी भक्तों के मन में हैं तो बहुत ही सरलता से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होते हैं ।
धर्म ग्रंथ के अनुसार कहा जाता है कि भगवान शिव का ना तो कभी जन्म हुआ है और ना ही जन्म होने वाले हैं, जगत के पिता है उनका पिता भला कौन होंगे । जो सत्य है वही शिव है जो सुंदर हैं वही महादेव है । शिव सर्वोच्च में है भगवान शिव आकार हैं और फिर निराकार हैं ब्रह्मांड में जितने भी ऊर्जा हैं सभी महादेव के भीतर समा हुआ है । काल का भी महाकाल है वही महादेव है । महादेव का इतिहास जितना भी बोलेंगे उतना ही काम । महादेव का इतिहास इतना सरल नहीं जानना अगर आपके मन में भक्ति श्रद्धा है तो बहुत ही सरलता से प्राप्त कर सकते हैं । एक बार समुद्र मंथन हुआ था जिसमें हलाला विष थी । इस हलाला विष ने तो पूरे पृथ्वी को नष्ट करने वाले थे लेकिन महादेव ऐसे होने नहीं दिया उन्होंने हलाला विष को अपने कंठ में धारण कर लिया था इसलिए भगवान शिव को नीलकंठ भी कहा जाता है । भगवान शिव का तो करोड़ों भक्त हैं लेकिन उनमें से एक रावण भी थे जिस रावण का वध भगवान राम ने किया था । लंकापति रावण भगवान शिव के प्रति इतना भक्ति और इतना श्रद्धा करते थे जिसके कारण भगवान शिव से बहुत सारे वरदान प्राप्त किए थे । एक बार लंकापति रावण ने भगवान शिव को ही कैलाश पर्वत से लंका में ले जाने की ठान लिया था । उनका भक्ति में इतना शक्ति था कि ऐसे परिस्थिति को रोकना किसी के वश की बात नहीं थे। अगर उस दिन लंकापति रावण ने भगवान शिवलिंग को लंका में ले जाकर स्थापित कर देता तो भगवान राम भी रावण को वध नहीं कर सकता था । ऐसी परिस्थिति को रोकने का काम एकमात्र विघ्नहर्ता गणेश जी ही थे । रावण जब शिवलिंग को उठाकर लंका में ले जा रहे थे तब उसे रोकने का काम भगवान गणेश जी किया था और यह काम सफल रहा ।
मित्रों भगवान शिव के इतिहास जितना बोलेंगे उतना ही कम है अगर आपके भीतर भगवान शिव के प्रति भक्ति श्रद्धा और आस्था है तो भगवान शिव के इतिहास जानने में आपको कोई कठिन नहीं होंगे । मित्रों भगवान शिव के इतिहास और भी जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो नीचे कमेंट बॉक्स में कमेंट अवश्य करें । अगर हमारे जानकारी आपको पसंद आया तो अपने दोस्त को भी शेयर करें और आप इसी तरह हमारे साथ जुड़े रहिए आपका दिन शुभ हो मंगलमय हो ।
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