what is sanatan dharma? सनातन धर्म की क्या है? जानें
सनातन धर्म क्या है और इसका सत्य क्या है ? - विस्तार से जानने के लिए हमारे साथ बने रहिए दोस्तों नमस्कार हमारे वेबसाइट में आपका स्वागत है । दोस्तों आप कोई भी धर्म के हो मगर अधिकांश लोगों के मन में यह प्रश्न जरूर होता होगा कि सनातन धर्म छोड़कर सब का धर्म का जन्म है स्थापित किया गया है । मगर सनातन धर्म का स्थापित किसने किया है ? इसका सत्य क्या है ? मित्रों आपका प्रश्न लाजवाब है इसलिए हमारे ओर से धन्यवाद देना चाहता हूं । आपका इस प्रश्नों के लिए आज हम अपना आर्टिकल के माध्यम से बताएंगे सनातन धर्म का सत्य क्या है !
वेदों में लिखा है ईश्वर अजन्मा है ईश्वर तो एक ही है लेकिन उनके रूप अनेक है उसे एक को छोड़कर उक्त अनेक के आधार पर नियम पूजा तीरथ आदि कर्मकांड को सनातन धर्म का अंत नहीं माना जा सकता यही सनातन सत्य है और यही सनातन धर्म है । यह एकमात्र ऐसा धर्म है जो आदि अनंत काल से चला आ रहा है । और यह हमें परम और मोक्ष का मार्ग बताता है । यह हमें किसी चीज का लालच नहीं देता ,बल्कि यह हमें उन लालची चीजों से मुक्त होने का मार्ग बताता है । सनातन धर्म के इतिहास को यदि वेदों के अनुसार जाना जाए तो ऋग्वेद में सनातन धर्म की कुछ इस तरह से व्याख्या की गई है ।
सत्यम शिवम सुंदरम जिसका पूरा अर्थ है यह बातें सनातन है समस्त देवता, मनुष्य इसी मार्ग से पैदा हुए हैं । तथा प्रगति की ही मनुष्य आप अपने उत्पन्न होने के आधार रूप अपनी माता को वरिष्ठ ना करें वेदों के अनुसार सत्य सनातन है । ईश्वर ही सत्य है, आत्मा ही सत्य है, मोक्ष ही सत्य है, और इस सत्य के मार्ग को बताने वाला धर्म ही सनातन और धर्म भी सत्य है । सनातन मतलब जो शाश्वत है, सदा के लिए सत्य है, जिन बातों का शाश्वत महत्व है वही सनातन कहा गया है । वह सत्य जो आदिकाल से चला आ रहा है और इसका कभी कोई अंत नहीं है जिनका ना कोई आरंभ है और अनंत है उसे सत्य को ही सनातन सत्य धर्म कहा गया है । सनातन धर्म के मूल तत्व अहिंसा, दया, श्रम, दान, जब तक यह नियम आदि है जिनका शाश्वत महत्व अन्य प्रमुख धर्म के उदय होने से पूर्व वेदों में इन सिद्धांतों को प्रतिपादित कर दिया गया था वैदिक या हिंदू धर्म को इसलिए सनातन धर्म कहा जाता है | क्योंकि यह एकमात्र धर्म है जो ईश्वर, आत्मा, और मोक्ष तत्व, और ध्यान से जानने का मार्ग बताता है | मोक्ष की परिभाषा इसी धर्म की देन है | एक निष्ठा ध्यान मौन और तप सहित यह नियम के अभ्यास है और जागरण का मोक्ष मार्ग है अन्य कोई मोक्ष का मार्ग नहीं है । मोक्ष से ही आत्मज्ञान और ईश्वर का ज्ञान होता है । ऋग्वेद के अनुसार यही सनातन धर्म का सत्य है । सनातन धर्म के इतिहास में 108 उपनिषद है । इनमें से एक व्रत धारण किया उपनिषद की हम बात करते हैं इसमें लिखा है आजतो महा सद्दाम में तमसो मा ज्योतिर्गमय मृत्योर्मा अमृतम गमय । अर्थात हे ईश्वर मुझे सत्य से सत्य की ओर ले चलो, अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो, मृत्यु से अमृत की ओर ले चलो । जो लोग उस परम तत्वपर ब्रह्म परमेश्वर को नहीं मानते हैं सत्य में गिरते हैं, सत्य से मृत्यु काल अनंत अंधकार में पढ़ते हैं । उनके जीवन की गाथा ब्रह्म और भटकाओं की ही गाथा सिद्ध होती है । वह कभी अमृत को प्राप्त नहीं करते हैं, मृत्यु आए इससे पहले ही सनातन धर्म के मार्ग पर आ जाने में ही भलाई है । अन्यथा अनंत योनियों में भटकने के बाद प्रलय काल के अंधकार में पड़े रहना पड़ता है । ऐसा हमारे वृद्धारण के उपनिषद में लिखा है इन्हें 108 उपनिषदों में से एक उपनिषद है और जिसे यस उपनिषद के नाम से भी जाना जाता है ।
इसमें लिखा है सत्य दो धातु से मिलकर बना है। सात और तत्व सत्कट है यह और तट का अर्थ है वह दोनों ही सत्य है । अहं ब्रह्मास्मि तथा बीएमसी मतलब ही ब्रह्म हूं और तुम ही ब्रह्म हो । यह संपूर्ण जगत ब्रह्म है, ब्रह्मा पूर्ण है, यह जगत भी पूर्ण है । पूर्ण जगत की उत्पत्ति पूर्ण ब्रह्म से हुई है पूर्ण ब्रह्म से पूर्ण जगत की उत्पत्ति होने पर ही ब्रह्म और पूर्णता में न्यूनता नहीं आई विशेष रूप में भी पूर्ण ही रहता है और यही सनातन धर्म सत्य है जो सत्य सदा सर्वदा निर्लिप्त निरंजन निर्विकार और सदैव स्वरूप में स्थित रहता है । उसे सनातन शाश्वत सत्य कहते हैं वेदों का ब्रह्म और गीता का अस्तित्व प्रज्ञा ही शाश्वत सत्य है । जड़, प्राण, मन, आत्मा ,और ब्रह्म शाश्वत सत्य की श्रेणी में आते हैं सृष्टि वह ईश्वर अनादि अनंत सनातन और सर्व भूपि है । दोस्तों आपको हमने बताया कि सनातन धर्म का अर्थ है । शाश्वत या सत्य जो सत्य है वही सनातन है, और इसी को सनातन धर्म कहते हैं ।
तो अगर हम बात करें सनातन धर्म से जुड़े जड़ तत्व की यह आकाश, वायु, जल, पृथ्वी, और अग्नि जिन्हें हम देख सकते हैं जिन्हें हम आभास या महसूस कर सकते हैं । और जिनको अभिभूत कर सकते हैं तो यही शाश्वत सत्य की श्रेणी में भी आते हैं । यह अपना रूप बदल सकते हैं लेकिन ये समाप्त नहीं होते । प्राण की भी अपनी अवस्थाएं हैं, प्राण अपान सामान और यह ज्ञानी लोग ब्रह्मा को निपुण और शगुन कहते हैं । ओर ये सारे भेद तब तक विद्यमान रहते हैं जब तक की आत्मा मोक्ष प्राप्त न कर ले यही सनातन धर्म का सत्य है । अभी तक आपने जाना की सनातन धर्म क्या है और इसकी उत्पत्ति कहां से हुई और इसके साक्ष्य और प्रमाण क्या है ?
लेकिन हम बात करते हैं हिंदुत्व आर्यावर्त और वैदिक उनके नाम क्यों और कैसे रखे गए ? इनका इतिहास क्या है ? यह राजा का रहस्य क्या है ? हम अगर बात करें हिंदुत्व धर्म की तो ईरानी अर्थात पारसी देश के पर्सी की धर्म पुस्तक अवस्था में हिंदू और आर्य शब्द का उल्लेख मिलता है । दूसरी ओर अन्य इतिहासकार मानते हैं कि चीनी यात्री इंसान के समय में हिंदू शब्द की उत्पत्ति इदूं से हुई है । हिंदू शब्द चंद्रमा का पर्यायवाची शब्द है, भारतीय ज्योतिषीय गणना का आधार चंद्रमा सही है ।
चीन के लोग भारतीय को हिंदू कहने लगे । कुछ विद्वान कहते हैं कि हिमालय से हिंदू शब्द की उत्पत्ति हुई । हिंदू कुछ पर्वत के नाम से ही हमारे धर्म का नाम है । वहीं दूसरी और अगर हम बात करें कि आर्यावर्त क्या है ? आर्य धर्म क्या है ? और आर्य समाज के लोग इसे आर्य धर्म कहते हैं किसी जातीय धर्म का नाम ना होते हुए इसका अर्थ श्रेष्ठ माना गया है । अर्थात जो मन वचन और कर्म श्रेष्ठ है वही आर्य है । बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्य का अर्थ ही श्रेष्ठ सत्य होता है । बुद्ध कहते हैं कि उक्त शेष में शाश्वत सत्य को जानकर ही अष्टांगिक मार्ग पर चलना इस धर्म सनातनों अर्थात यही सनातन धर्म कहलाता है । इस प्रकार आर्य धर्म का अर्थ शेष क्षमता होता है । प्राचीन भारत को आर्यावर्त भी कहा जाता है । इसका तात्पर्य श्रेष्ठ जनों की निवास भूमि था जिसका तात्पर्य श्री सज्जनों की निवास भूमि था सनातन मार्ग । दोस्तों जब विज्ञान प्रत्येक वस्तु विचार और तत्वों का मूल्यांकन करते हैं तब इस प्रक्रिया में धर्म के अनेक विश्वास और सिद्धांत धराशाही हो जाते हैं । विज्ञान भी अभी तक सनातन धर्म को पूर्ण रूप से जानने में सक्षम नहीं हुआ है । किंतु वेदांत में उल्लेखित है जिसे सनातन धर्म की महिमा का वर्णन किया गया है विज्ञानधीरे-धीरे उससे सहमत होता हुआ नजर आ रहा है हमारे ऋषि मुनियों में ध्यान और मोक्ष की गहरी अवस्था में ब्रह्म के रहस्य को जानकर उसे स्पष्ट तौर पर व्यक्त किया है ।
वेदों में सर्वप्रथम ब्रह्म और ब्राह्मण के रहस्य से पर्दा हटाकर मोक्ष की धारणा को प्रतिपादित करें उसके महत्व को समझाया गया था । मोक्ष के बिना आत्मा की कोई गति नहीं है । इसलिए ऋषियों ने मोक्ष के मार्ग को ही सनातन मार्ग माना है । किंतु मोक्ष का मार्ग सिर्फ सनातन धर्म से ही निकलते हैं । धर्म अर्थ कर्म और मोक्ष जीवन का अंतिम लक्ष्य है। यह नियम अभ्यास और जागरण से ही मोक्ष मार्ग प्राप्त होता है । जन्म और मृत्यु विद्या है, जगत ब्रह्म पूर्ण है, ब्रह्मा और मोक्ष ही सत्य है, मोक्ष से ही ब्रह्म हुआ जा सकता है इसके अलावा स्वयं की अस्तित्व को कायम करने के कोई उपाय नहीं है ।
ब्रह्मा के प्रति समर्पित रहने वाले ब्राह्मण और ब्राह्मण को जानने वाले ही ब्रह्म । ऋषि और ब्रह्म को जानकर ब्रह्म में हो जाने वाला ही ब्रह्मलीन कहलाता है । सनातन धर्म ही एक ऐसा धर्म है जिसका कोई विरोधाभास नहीं हो सकता । क्योंकि सनातन धर्म के सत्य को जन्म देने वाले अलग-अलग काल में अनेक ऋषि हुए हैं । उक्त ऋषि को दृष्ट कहा जाता है ।अर्थात जिन्होंने सत्य को जैसा देखा वैसा ही कहा । इसलिए सब ऋषियों की बातों में एक रूपता दिखाई देती है । जो ऋषियों की बातों को समझ नहीं पाते हैं जो उसे भेदभाव करते हैं । भेद भाषाओं में होता है, अनुवादों में होता है , संस्कृत में होता है, परंपराओं में होता है , सिद्धांतों में होता है, लेकिन सत्य में कभी भेदभाव नहीं होता । इसलिए सनातन धर्म एक मात्र ऐसा धर्म है जिसका कोई विरोधाभास नहीं है । सनातन ही सत्य है और सत्य ही सनातन है । दोस्तों आज हमारे इस आर्टिकल में आपको कैसा लगा कमेंट करके जरूर बताइएऔर हमारे साथ इसी प्रकार बना रही है धन्यवाद आपका दिन शुभ हो ।