उर्दू में अज़ान का अर्थ (पुकार) है। नमाज के पहले अज़ान इसीलिए दी जाती है कि आस-पास के मुसलमानों को नमाज की सूचना मिल जाए और वे सांसारिक कार्यों को छोड़कर कुछ मिनटों के लिए मस्जिद में खुदा की इबादत करने के लिए आ जाएँ। सुन्नत/नफ्ल नमाज अकेले पढ़ी जाती है और फ़र्ज़ समूह (जमाअत) के साथ। फ़र्ज़ नमाज साथ मिलकर (जमाअत) के साथ पढ़ी जाती है उसमें एक मनुष्य (इमाम) आगे खड़ा हो जाता है, जिसे इमाम कहते हैं और बचे लोग पंक्ति बाँधकर पीछे खड़े हो जाते हैं। इमाम नमाज पढ़ाता है आप भी उसी प्रकार अनुसरण करें ।
नमाज पढ़ने के लिए मुसलमान मक्का (किबला) की ओर मुख करके खड़ा हो जाइए और नमाज की इच्छा इरादा करें और फिर "अल्लाह हो अकबर" कहकर तकबीर करें। इसके बाद दोनों हाथों को कानों तक उठाकर नाभि के करीब इस तरह बाँध ले दायां हाथ बाएं हाथ पर। सम्मान से आप सामने खड़ा हो जाइए और जमीन पर नजर रखिए। खुदा के सामने खड़ा होकर सभी का मंगल कामना करें और कुरान शरीफ से कुछ तिलावत करें, जिसमें फातिह: (कुरान शरीफ की पहली सूरह) का पढ़ना आवश्यक है। इसके बाद अन्य सूरह । कभी उच्च तथा कभी मद्धिम स्वर से पढ़े । इसके बाद आप जमीन पर झुकीए जिसे रुक़ू कहते हैं, फिर खड़ा हो जाइए जिसे क़ौमा कहते है, फिर सजदा में सर झुकाई । कुछ क्षणों के बाद घुटनों के बल बैठ जाइए और फिर सिजदा में सर झुकाए। फिर कुछ देर के बाद खड़ा हो जाए। इन सब कार्यों के बीच-बीच वह छोटी-छोटी दुआएँ भी मांगे जिनमें अल्लाह की प्रशंसा होती है। इस प्रकार नमाज की एक रकअत समाप्त होती है।
फिर दूसरी रकअत इसी प्रकार पढ़ता है और सिजदा के उपरांत घुटनों के बल बैठ जाता है। फिर पहले दाईं ओर सलाम फेरता है और तब बाईं ओर। इसके बाद वह अल्लाह से हाथ
उठाकर दुआ माँगता है और इस प्रकार नमाज़ की दो रकअत पूरी करता है अधिकतर नमाजें दो रकअत करके पढ़ी जाती हैं और कभी-कभी चार रकअतों की भी नमाज़ पढ़ी जाती है। वित्र नमाज तीन रकअतो की पढ़ी जाती है। सभी नमाज पढ़ने का तरीका कम अधिक यही है।
नमाज में क्या क्या पढ़ा जाता है ?
नमाज़ -ए-फ़ज्र (उषाकाल की नमाज)-यह पहली नमाज है जो प्रात: काल सूर्य के उदय होने के पहले पढ़ी जाती है।
नमाज-ए-ज़ुहर (अवनतिकाल की नमाज) यह दूसरी नमाज है जो मध्याह्न सूर्य के ढलना शुरु करने के बाद पढ़ी जाती है।
नमाज -ए-अस्र (दिवसावसान की नमाज)- यह तीसरी नमाज है जो सूर्य के अस्त होने के कुछ पहले होती है।
नमाज-ए-मग़रिब (सायंकाल की नमाज)- चौथी नमाज जो सूर्यास्त के तुरंत बाद होती है।
नमाज-ए-ईशा (रात्रि की नमाज)- अंतिम पाँचवीं नमाज जो सूर्यास्त के डेढ़ घंटे बाद पढ़ी जाती है।